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27, ఆగస్టు 2018, సోమవారం

भारतीय काव्य शास्त्र - रस और उसके स्थायी भाव


रस की परिभाषा:-
◆किसी काव्य को पढने से या कविता को सुनने से या नाटक को देखने से जो अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है, उसे रस कहते है।
◆रस को काव्य की आत्मा व प्राण तत्व  भी कहते है।
◆रस का शाब्दिक अर्थ आनंद है।
रस संप्रदाय के प्रवर्तक - भरतमुनि।               
          रस                                 स्थायी भाव
१)श्रृंगार रस          प्रेम/रति
२)वीर रस             उत्साह
३)हास्य रस           हास
४)रौद्र रस              क्रोध
५)करुण रस          शोक
६)बीभत्स रस         घृणा/ जुगुप्सा
७)भयानक रस        भय
८)शांत रस              निर्वेद/ शम
९)अद्भुत रस            आश्चर्य/विस्मय
१०) वात्सल्य रस      वात्सल्य रति
११) भक्ति रस          अनुराग
■भरतमुनि ने केवल ८ रसों को अपने नाट्यशास्त्र में उल्लेख किया गया ।
■हिंदी में नौ रस माने गये हैं।


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