रस की परिभाषा:-
◆किसी काव्य को पढने से या कविता को सुनने से या नाटक को देखने से जो अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है, उसे रस कहते है।
◆रस को काव्य की आत्मा व प्राण तत्व भी कहते है।◆रस का शाब्दिक अर्थ आनंद है।
◆रस संप्रदाय के प्रवर्तक - भरतमुनि।
रस | स्थायी भाव |
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२)वीर रस उत्साह
३)हास्य रस हास
४)रौद्र रस क्रोध
५)करुण रस शोक
६)बीभत्स रस घृणा/ जुगुप्सा
७)भयानक रस भय
८)शांत रस निर्वेद/ शम
९)अद्भुत रस आश्चर्य/विस्मय
१०) वात्सल्य रस वात्सल्य रति
११) भक्ति रस अनुराग
■भरतमुनि ने केवल ८ रसों को अपने नाट्यशास्त्र में उल्लेख किया गया ।
■हिंदी में नौ रस माने गये हैं।
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